Monika garg

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लेखनी कहानी -17-Oct-2022# धारावाहिक लेखन प्रतियोगिता # त्यौहार का साथ# नाग पंचमी

भारत देश कृषिप्रधान देश हैं सांप खेतों का रक्षण करता है, इसलिए उसे क्षेत्रपाल कहते हैं। जीव-जंतु, चूहे आदि जो फसल को नुकसान करने वाले तत्व हैं, उनका नाश करके सांप हमारे खेतों को हराभरा रखता है। साँप हमें कई मूक संदेश भी देता है। साँप के गुण देखने की हमारे पास गुणग्राही और शुभग्राही दृष्टि होनी चाहिए। भगवान दत्तात्रय की ऐसी शुभ दृष्टि थी, इसलिए ही उन्हें प्रत्येक वस्तु से कुछ न कुछ सीख मिली।

साँप सामान्यतया किसी को अकारण नहीं काटता। उसे परेशान करने वाले को या छेड़ने वालों को ही वह डंसता है। साँप भी प्रभु का सर्जन है, वह यदि नुकसान किए बिना सरलता से जाता हो, या निरुपद्रवी बनकर जीता हो तो उसे मारने का हमें कोई अधिकार नहीं है। जब हम उसके प्राण लेने का प्रयत्न करते हैं, तब अपने प्राण बचाने के लिए या अपना जीवन टिकाने के लिए यदि वह हमें डँस दे तो उसे दुष्ट कैसे कहा जा सकता है? हमारे प्राण लेने वालों के प्राण लेने का प्रयत्न क्या हम नहीं करते? साँप को सुगंध बहुत ही भाती है। चंपा के पौधे को लिपटकर वह रहता है या तो चंदन के वृक्ष पर वह निवास करता है। केवड़े के वन में भी वह फिरता रहता है। उसे सुगंध प्रिय लगती है, इसलिए भारतीय संस्कृति को वह प्रिय है। प्रत्येक मानव को जीवन में सद्गुणों की सुगंध आती है, सुविचारों की सुवास आती है, वह सुवास हमें प्रिय होनी चाहिए।

हम जानते हैं कि साँप बिना कारण किसी को नहीं काटता। वर्षों परिश्रम संचित शक्ति यानी जहर वह किसी को यों ही काटकर व्यर्थ खो देना नहीं चाहता। हम भी जीवन में कुछ तप करेंगे तो उससे हमें भी शक्ति पैदा होगी। यह शक्ति किसी पर गुस्सा करने में, निर्बलों को हैरान करने में या अशक्तों को दुःख देने में व्यर्थ न कर उस शक्ति को हमारा विकास करने में, दूसरे असमर्थों को समर्थ बनाने में, निर्बलों को सबल बनाने में खर्च करें, यही अपेक्षित है।

प्रातः उठकर घर की सफाई कर नित्यकर्म से निवृत्त हो जाएँ।
पश्चात स्नान कर साफ-स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
पूजन के लिए सेंवई-चावल आदि ताजा भोजन बनाएँ। कुछ भागों में नागपंचमी से एक दिन भोजन बना कर रख लिया जाता है और नागपंचमी के दिन बासी खाना खाया जाता है।
इसके बाद दीवाल पर गेरू पोतकर पूजन का स्थान बनाया जाता है। फिर कच्चे दूध में कोयला घिसकर उससे गेरू पुती दीवाल पर घर जैसा बनाते हैं और उसमें अनेक नागदेवों की आकृति बनाते हैं।
कुछ जगहों पर सोने, चांदी, काठ व मिट्टी की कलम तथा हल्दी व चंदन की स्याही से अथवा गोबर से घर के मुख्य दरवाजे के दोनों बगलों में पाँच फन वाले नागदेव अंकित कर पूजते हैं।
सर्वप्रथम नागों की बांबी में एक कटोरी दूध चढ़ा आते हैं।
और फिर दीवाल पर बनाए गए नागदेवता की दधि, दूर्वा, कुशा, गंध, अक्षत, पुष्प, जल, कच्चा दूध, रोली और चावल आदि से पूजन कर सेंवई व मिष्ठान से उनका भोग लगाते हैं।
पश्चात आरती कर कथा श्रवण करना चाहिए।

इस दिन नागदेव का दर्शन अवश्य करना चाहिए।
बांबी (नागदेव का निवास स्थान) की पूजा करना चाहिए।
नागदेव की सुगंधित पुष्प व चंदन से ही पूजा करनी चाहिए क्योंकि नागदेव को सुगंध प्रिय है।
ॐ कुरुकुल्ये हुं फट् स्वाहा का जाप करने से सर्पविष दूर होता है।
प्राचीन काल में एक सेठजी के सात पुत्र थे। सातों के विवाह हो चुके थे। सबसे छोटे पुत्र की पत्नी श्रेष्ठ चरित्र की विदूषी और सुशील थी, परंतु उसके भाई नहीं था।

एक दिन बड़ी बहू ने घर लीपने को पीली मिट्टी लाने के लिए सभी बहुओं को साथ चलने को कहा तो सभी डलिया (खर और मूज की बनी छोटी आकार की टोकरी) और खुरपी लेकर मिट्टी खोदने लगी। तभी वहां एक सर्प निकला, जिसे बड़ी बहू खुरपी से मारने लगी। यह देखकर छोटी बहू ने उसे रोकते हुए कहा- 'मत मारो इसे? यह बेचारा निरपराध है।' यह सुनकर बड़ी बहू ने उसे नहीं मारा तब सर्प एक ओर जा बैठा। तब छोटी बहू ने उससे कहा-'हम अभी लौट कर आती हैं तुम यहां से जाना मत। यह कहकर वह सबके साथ मिट्टी लेकर घर चली गई और वहाँ कामकाज में फँसकर सर्प से जो वादा किया था उसे भूल गई।

उसे दूसरे दिन वह बात याद आई तो सब को साथ लेकर वहाँ पहुँची और सर्प को उस स्थान पर बैठा देखकर बोली- सर्प भैया नमस्कार! सर्प ने कहा- 'तू भैया कह चुकी है, इसलिए तुझे छोड़ देता हूं, नहीं तो झूठी बात कहने के कारण तुझे अभी डस लेता। वह बोली- भैया मुझसे भूल हो गई, उसकी क्षमा माँगती हूं, तब सर्प बोला- अच्छा, तू आज से मेरी बहिन हुई और मैं तेरा भाई हुआ। तुझे जो मांगना हो, माँग ले। वह बोली- भैया! मेरा कोई नहीं है, अच्छा हुआ जो तू मेरा भाई बन गया।

कुछ दिन व्यतीत होने पर वह सर्प मनुष्य का रूप रखकर उसके घर आया और बोला कि 'मेरी बहिन को भेज दो।' सबने कहा कि 'इसके तो कोई भाई नहीं था, तो वह बोला- मैं दूर के रिश्ते में इसका भाई हूँ, बचपन में ही बाहर चला गया था। उसके विश्वास दिलाने पर घर के लोगों ने छोटी को उसके साथ भेज दिया। उसने मार्ग में बताया कि 'मैं वहीं सर्प हूँ, इसलिए तू डरना नहीं और जहां चलने में कठिनाई हो वहां मेरी पूछ पकड़ लेना। उसने कहे अनुसार ही किया और इस प्रकार वह उसके घर पहुंच गई। वहाँ के धन-ऐश्वर्य को देखकर वह चकित हो गई।

एक दिन सर्प की माता ने उससे कहा- 'मैं एक काम से बाहर जा रही हूँ, तू अपने भाई को ठंडा दूध पिला देना। उसे यह बात ध्यान न रही और उससे गर्म दूध पिला दिया, जिसमें उसका मुख बेतरह जल गया। यह देखकर सर्प की माता बहुत क्रोधित हुई। परंतु सर्प के समझाने पर चुप हो गई। तब सर्प ने कहा कि बहिन को अब उसके घर भेज देना चाहिए। तब सर्प और उसके पिता ने उसे बहुत सा सोना, चाँदी, जवाहरात, वस्त्र-भूषण आदि देकर उसके घर पहुँचा दिया।

इतना ढेर सारा धन देखकर बड़ी बहू ने ईर्षा से कहा- भाई तो बड़ा धनवान है, तुझे तो उससे और भी धन लाना चाहिए। सर्प ने यह वचन सुना तो सब वस्तुएँ सोने की लाकर दे दीं। यह देखकर बड़ी बहू ने कहा- 'इन्हें झाड़ने की झाड़ू भी सोने की होनी चाहिए'। तब सर्प ने झाडू भी सोने की लाकर रख दी।

सर्प ने छोटी बहू को हीरा-मणियों का एक अद्भुत हार दिया था। उसकी प्रशंसा उस देश की रानी ने भी सुनी और वह राजा से बोली कि- सेठ की छोटी बहू का हार यहाँ आना चाहिए।' राजा ने मंत्री को हुक्म दिया कि उससे वह हार लेकर शीघ्र उपस्थित हो मंत्री ने सेठजी से जाकर कहा कि 'महारानीजी छोटी बहू का हार पहनेंगी, वह उससे लेकर मुझे दे दो'। सेठजी ने डर के कारण छोटी बहू से हार मंगाकर दे दिया।

छोटी बहू को यह बात बहुत बुरी लगी, उसने अपने सर्प भाई को याद किया और आने पर प्रार्थना की- भैया ! रानी ने हार छीन लिया है, तुम कुछ ऐसा करो कि जब वह हार उसके गले में रहे, तब तक के लिए सर्प बन जाए और जब वह मुझे लौटा दे तब हीरों और मणियों का हो जाए। सर्प ने ठीक वैसा ही किया। जैसे ही रानी ने हार पहना, वैसे ही वह सर्प बन गया। यह देखकर रानी चीख पड़ी और रोने लगी।

यह देख कर राजा ने सेठ के पास खबर भेजी कि छोटी बहू को तुरंत भेजो। सेठजी डर गए कि राजा न जाने क्या करेगा? वे स्वयं छोटी बहू को साथ लेकर उपस्थित हुए। राजा ने छोटी बहू से पूछा- तुने क्या जादू किया है, मैं तुझे दण्ड दूंगा। छोटी बहू बोली- राजन ! धृष्टता क्षमा कीजिए, यह हार ही ऐसा है कि मेरे गले में हीरों और मणियों का रहता है और दूसरे के गले में सर्प बन जाता है। यह सुनकर राजा ने वह सर्प बना हार उसे देकर कहा- अभी पहिनकर दिखाओ। छोटी बहू ने जैसे ही उसे पहना वैसे ही हीरों-मणियों का हो गया।

यह देखकर राजा को उसकी बात का विश्वास हो गया और उसने प्रसन्न होकर उसे बहुत सी मुद्राएं भी पुरस्कार में दीं। छोटी वह अपने हार और इन सहित घर लौट आई। उसके धन को देखकर बड़ी बहू ने ईर्षा के कारण उसके पति को सिखाया कि छोटी बहू के पास कहीं से धन आया है। यह सुनकर उसके पति ने अपनी पत्नी को बुलाकर कहा- ठीक-ठीक बता कि यह धन तुझे कौन देता है? तब वह सर्प को याद करने लगी।

तब उसी समय सर्प ने प्रकट होकर कहा- यदि मेरी धर्म बहिन के आचरण पर संदेह प्रकट करेगा तो मैं उसे खा लूँगा। यह सुनकर छोटी बहू का पति बहुत प्रसन्न हुआ और उसने सर्प देवता का बड़ा सत्कार किया। उसी दिन से नागपंचमी का त्योहार मनाया जाता

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5 Comments

Wahh 🙏🌸🌺

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Raziya bano

15-Nov-2022 05:41 PM

Shaandar

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Gunjan Kamal

15-Nov-2022 04:26 PM

शानदार

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